Sunday 22 December 2013

Kya Likhu ( क्या लिखु ) POEM No. 145 (Chandan Rathore)


POEM NO. 145
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क्या लिखु 
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 तड़पते हुए ख्वाब क्या लिखु
बिछड़े हुए जज्बात क्या लिखु 
बिना पगडण्डी कि है जिंदगी मेरी 
बस गुमनाम राह क्या लिखु 

सोचता रहता हूँ हर पल 
पर इन कोमल कागज पर, सुखे अल्फाज क्या लिखु 
बहकता भटकता फिरता हूँ मंजिल पाने को  
पर अपना दर्दे दीदार कहा लिखु 

ना ख़ामोशी रहती है ना होता शोरगुल
खण्डर  सा  दिल मेरा उसकी हर दिवार पे क्या लिखु 
आंशुओ से नाता है पुराना शायद 
पर सूखे आंशुओं से क्या क्या लिखु 

दर्द बहुत होता है अब तो 
बंद जिवा से क्या लिखु 
मर गये विचार सारे  मेरे 
अब सहे हुए अत्याचार क्या लिखु 

"लेखक कि पूँजी लेखनी है
है कितना दर्द उसमे अब परखनी है
खामोश हो जाएगा लेखक जब 
लेखक कि फ़तेह उसे ही देखनी है"


आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़ (#Rathoreorg20)

12:05am, Fri 06-09-2013

_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂_

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