Saturday 13 September 2014

Bah Gai Khwahish ( बह गई ख्वाहिश) POEM No. 188 (Chandan Rathore)


POEM No. 188
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बह गई ख्वाहिश
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उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश

स्वप्न की बेला में
हर दम अकेला में
दुःखों की सैया पे
खुशियों की नुमाइश

धिक्कार सा जीवन
मन चंचल सा
रोज नवीन उत्पात मचाता
नव मन क्रीड़ा की होती यहाँ फरमाइश

उछल-उछल कर दौड़ता जाता
मन इक घोडा है
एक उपवन में ना समाता
मन शांत करने की है फरमाइश

उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:43 PM 01/02/2014
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂

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