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बह गई ख्वाहिश
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उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश
स्वप्न की बेला में
हर दम अकेला में
दुःखों की सैया पे
खुशियों की नुमाइश
धिक्कार सा जीवन
मन चंचल सा
रोज नवीन उत्पात मचाता
नव मन क्रीड़ा की होती यहाँ फरमाइश
उछल-उछल कर दौड़ता जाता
मन इक घोडा है
एक उपवन में ना समाता
मन शांत करने की है फरमाइश
उमड़ गये बादल
बरस गई बारिश
धूल गए अरमान
बह गई ख्वाहिश
आपका शुभचिंतक
2:43 PM 01/02/2014
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
(Facebook,Poem Ocean,Google+,Twitter,Udaipur Talents, Jagran Junction , You tube , Sound Cloud ,hindi sahitya,Poem Network)
2:43 PM 01/02/2014
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