Monday 15 September 2014

Faasle (फासले) POEM NO. 189 (Chandan Rathore)


POEM NO. 189
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फासले
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इन मिलो के फासलों को कैसे कम करू
हो रही है शाम खुशियों की इस शाम को कैसे खुश करू

ये सारी हवाएँ आती है मेरी 
मै किस किस हवा से सामना करू

देखता हूँ मै जब तेरी सूरत को
चला जाता हूँ मै मीलों दूर

सूरज को पकड़ ना पाता हूँ
पर चाँद से दूरी कैसे कम करू

छोड़ दिया तुझे भूल भी गया तुझे
पर तेरी इन यादों को कैसे कम करू

तुझे माना मेने अपना सब कुछ
अब तू ही तो बता तुझसे फासला कैसे करू 


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

2:51 PM 01/02/2014
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂

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