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आज जीना मुश्किल है
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अमीरों के लिए सविंधान है
गरीबों के लिए समशान है
बेच दिए घर के बर्तन
फिर भी भूखे सोते है
हमारे जलाने को लकड़ी भी नहीं
वो मखमल के बिस्तर पर सोते है
भेदभाव इतना है की खाना मुश्किल होता है
आज जीना मुश्किल है
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अमीरों के लिए सविंधान है
गरीबों के लिए समशान है
बेच दिए घर के बर्तन
फिर भी भूखे सोते है
हमारे जलाने को लकड़ी भी नहीं
वो मखमल के बिस्तर पर सोते है
भेदभाव इतना है की खाना मुश्किल होता है
रोती बिलखती माँ अब ये कहती है
भूखे बच्चों को सुलाना मुश्किल होता है
मेहनत कर कुछ कमा के लाते है
एक एक रोटी के लिए पुरे जग से लड़ना भिड़ना पड़ता है
होती शांत ना उदर पीड़ा अब इस कलयुग में
आज मरना आसान और जीना मुश्किल लगता है
चिंतित व्याकुल पिता रोता है चोरी-चोरी
माँ सिसक-सिसक कर चूल्हें में अरमान जलाती है
ये पीड़ा है बस रोती की जो हर
गड़ी सहना पड़ता है
आज गरीब के मुँह में निवाला नही
अमीरों के घर खाना फिकता है
उन भूखे बच्चों को आज जीना मुश्किल लगता है
भूखे बच्चों को सुलाना मुश्किल होता है
मेहनत कर कुछ कमा के लाते है
एक एक रोटी के लिए पुरे जग से लड़ना भिड़ना पड़ता है
होती शांत ना उदर पीड़ा अब इस कलयुग में
आज मरना आसान और जीना मुश्किल लगता है
चिंतित व्याकुल पिता रोता है चोरी-चोरी
माँ सिसक-सिसक कर चूल्हें में अरमान जलाती है
ये पीड़ा है बस रोती की जो हर
गड़ी सहना पड़ता है
आज गरीब के मुँह में निवाला नही
अमीरों के घर खाना फिकता है
उन भूखे बच्चों को आज जीना मुश्किल लगता है
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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02:03pm, Sun 26-01-2014
(#Rathoreorg20)
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