POEM NO. 190
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तेरे बगैर मै
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तेरे बगैर मै, कैसा लगता हूँ
तेरे सिवा मन मेरा लगता नही
तेरे बगैर सुना ये मंझर
तेरे लिए मै हूँ ही नही
कैसे सम्भालू अपने आप को ओ !! जालिम
जब तेरे बगैर पूरा में हूँ ही नही
इतने गम सहते हुए भी जिन्दा हूँ क्यों
तू क्या जाने मेरे जज्बात तू अब ताक समझी नही
ढूंढ रहा हूँ मै मेरे जख्मों के सवाल
दुनिया पूछे मुझे की अब तक वो तुझे मिली क्यों नही
तेरे बगैर मै अब कैसे जी रहा हूँ
तेरे बगैर मै कुछ भी नही
तेरे सिवा मन मेरा लगता नही
तेरे बगैर सुना ये मंझर
तेरे लिए मै हूँ ही नही
कैसे सम्भालू अपने आप को ओ !! जालिम
जब तेरे बगैर पूरा में हूँ ही नही
इतने गम सहते हुए भी जिन्दा हूँ क्यों
तू क्या जाने मेरे जज्बात तू अब ताक समझी नही
ढूंढ रहा हूँ मै मेरे जख्मों के सवाल
दुनिया पूछे मुझे की अब तक वो तुझे मिली क्यों नही
तेरे बगैर मै अब कैसे जी रहा हूँ
तेरे बगैर मै कुछ भी नही
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
(Facebook,Poem Ocean,Google+,Twitter,Udaipur Talents, Jagran Junction , You tube , Sound Cloud ,hindi sahitya,Poem Network)
11:48 AM 03/02/2014
(#Rathoreorg20)
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