POEM NO. 7
----------------
मानव शरीर की अंतिम यात्रा
--------------------
जिन्दगी की कसमकस से दूर एक सैया पे सोये हें |
एक तरफ घी का दीपक दूसरी और कूल का दीपक
रो रो कर अपने अपनों को बुला रहे हे दोस्तों ||1||
जो था मन में वो सब रो रो के सुना रहे हे |
जब में था तो कोई मेरा ना था
आज सब चिल्ला चिल्ला कर अपना बता रहे हे दोस्तों ||2||
जब था तो कदर ना थी मेरी आज सिने से लगा कर रो रहे हे लोग |
जिन्दा था तो किसी ने पानी का नही पूछा
आज मेरी लाश के पास से चीटिया हटा रहे हे लोग ||3||
दिन ढला रात हुई फिर नया सवेरा था
जो बाकि थे वो भी आ रहे थे लोग |
सब अपना अपना राग सुना रहे थे लोग ||4||
जिन्दा था तो नहाने का पानी नसीब नही था |
आज गंगा जल , दुध और गव मूत्र से नहला रहे हे लोग ||5||
हुआ समय मेरे अपने घर को छोड़ने का |
आ गया गास फूस का बिस्तर उसपे मुझे लेटा रहे हे लोग ||6||
भाग ना जाए मेरी काया इसलिए उसे भी रस्सी से बाँध रहे हे लोग ||7||
हुआ जब समय विदाई का तो आलम ही कुछ अजीब था |
जिन्दा था तो लोगो ने ठोखरो (पेरो) में निकला
आज मेरे पेरो को पकड़ कर रो रहे हे लोग ||8||
उठाया मुझे इस कदर जेसे मनो में आश्मान में झूल रहा हु |
जिनको में अपने कंधो पर उठाता रहा
आज मुझे कंधो पर उठा कर शमशान की और ले जा रहे हे लोग || 9 ||
चल पड़ी मेरी काया उसी रास्ते जिस रास्ते निकलता में रोज |
आखे नम मेरे साथियों की और नमन कर रहे थे लोग || 10 ||
कुछ ही दूर था मेरा नया ठिकाना
जिसे मेने अब तक ना पहचाना
तुम याद जरुर रखना
एक दिन तुम्हे भी यही हें आना || 11 ||
राम नाम सत्य हें राम नाम सत्य हें
ये कहते हुए ले गये मुझे दोस्तों |
राम नाम सत्य हें ये आज मुझे समझा रहे हें लोग || 12 ||
आ पंहुचा में उस मंजर पर
जिस पर पहुचने के लिए मुझे बरसो लगे |
आज मिट जायेगा मेरा हर एक सपना
पराया हो जायेगा मेरा ठिकाना दोस्तों || 13 ||
लेटा दिया मुझे लकडियो के बिस्तर पर |
चारो तरफ लोग ही लोग मेरे बिस्तर को सजाने में लगे थे दोस्तों || 14 ||
मेरे शरीर के बारे में ऐसी बाते कर रहे थे
मानो किसी जानवर के शरीर को जला रहे थे लोग || 15 ||
वे ही थे वो लोग जिन्हें में अपना समझता रहा |
आज मुझे ज्ञात हुआ सब मोह माया हें
प्रभु की सेवा ही अपनी माया हें दोस्तों || 16 ||
जिन्दा था तो बेटो ने घी नसीब ना कराया दोस्तों |
बेटे आज घी शरीर पर लगा रहे हें दोस्तों || 17 ||
जो था मेरे पास वो सब ले लिया
हाथ में बंधा धागा भी मेरा ना हुआ दोस्तों || 18 ||
सब कहने लगे देख लेना कही कुछ रह ना जाये इनके शरीर पर |
जिन्दगी भर कमाया था कुछ साथ नही गया दोस्तों || 19 ||
आ गया मेरा बेटा हाथ में जलती हुई लकड़ी लिए |
पाला-पोषा काबिल बनाया आज वो ही जला रहा हें दोस्तों || 20 ||
जला दिया मेरे शरीर को शुरू हुआ काम मेरी अश्तियो को ठिकाने लगाने का |
कुछ तो निकाली हरिद्वार पहुचाने के लिए बाकि बहा दी नदी में दोस्तों || 21 ||
चले गये सब अपने अपने आशियाने में
भूल गये सब मुझे याद रही मेरी बाते दोस्तों || 22 ||
माना वो दस्तूर था दुनिया का पर |
जो आज मेरे साथ हुआ वो कल तुम्हारे साथ भी होगा दोस्तों || 23 ||
छोड़ो सब झगडा हिल मिल रहो सब साथ दोस्तों |
साथ ना कुछ गया ना कुछ जाएगा बस रह जाएगी यादे दोस्तों बस रह जाएगी यादे दोस्तों || 24 ||
-------------------------------------------------------------------------------------------------
कविता के बारे में ..
इस कविता की शुरुवात हमने 3:00 am
28/9/2012 को अपने दादा जी की लाश के पास रोते हुए की थी और ये कविता हमने 6
दिनों 20 घंटे 3 मिनिट में पूरी की 11:03 PM 4/10/2012 को हालाकि हमने
प्रितिदिन कविता लिखने में 10-15 मिनिट ही दिए हे
यह कविता कहो
या मेरे मन के भाव कहो ये तो में नही जानता पर हा अगर किसी के साथ यदि ऐसा
घटा हो या उसने ये सब देखा हो तो उस इंशान के मन में कविता पढ़ते वक्त वो
काल्पनिक चित्र मन में चल सकते हे |
वेसे तो एक मरा हुआ शरीर
कुछ नही बोल सकता पर अगर वो कुछ बोल पाता तो वह क्या क्या कहता ये मेने आप
को बताने की कोशिस की हे अगर समझ में आये तो इन शब्दों से कुछ सीखे और ना
समझ आये तो चंद कागज और चंद शब्द कही मिट जाते हे पता ही नही चलता
इस कविता में मेने किसी दुसरे को ठेस पहुचाने के उधेश्य से नही लिखी हे
बल्कि कविता का हर एक शब्द मानो मेरे दादा जी के मुखार्बिंदु से पीड़ा के
साथ निकल रहा हो जो उनके साथ हुई या वो जो उस समय सोचेगे ये मेरा एक
काल्पनिक मापदंड हे |
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"