Saturday 27 April 2013

Tum Jaa Rahi Ho (तुम जा रही हो) Poem No. 90 (Chandan Rathore)

Poem No.90
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तुम जा रही हो . . . .
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तुम जा रही हो
संग मेरी खुशियाँ ले जा रही हो
तुम कैसे आज अपने दिल को समझा रही हो
हंसी आ रही अपने पे आज की तुम असे कैसे छोड़ के जा रही हो

देखो आज तुम मुझे हर कदम पे नजर आ रही हो
ए सुनो ना तुम मुझे इतना क्यों तड़पा रही हो

चाँद को देख रहा हूँ मै
लगता जैसे आज फिर मुस्कुरा रही हो
ए रोबो ऐसे बिच राह में क्यों छोड़ के जा रही हो

तुम चली जाओंगी एक दिन मैं फिर अकेला पड़ जाऊंगा
ए तुम जाते जाते ऐसे मुंह क्यों बना रही हो

याद करोंगी ना मुझे वंहा जाकर जहाँ सब होंगे नोकर चाकर
ऎसे लग रहा हैं मुझे जैसे तुम मुझे अभी से भूले जा रही हो

देख तेरी याद बहुत आएगी मुझे, मैं अपने आप को कैसे संभालूँगा
रोबो मुझे ऐसा क्यों लग रहा है ,कि तुम मुझसे बहुत दूर जा रही हो

देख ना आजा तू मैं तुझे नहीं सताऊंगा
तेरी हर सरारतों को मैं चुप चाप सह जाऊँगा
देख मेरी आँखे भर आई हैं
अब मुझे रुला कर तो मुझसे दूर ना हो

बस इतना सा साथ था तेरा
कुछ पल आंसुओ ने गेरा
अब गेर रही जैसे तन्हाई हो
तुम अब दूर ना हॊ अब तुम दूर ना हॊ

मैं तुमसे दूर चला जाऊँगा
अब कभी ना नजर मैं आऊंगा
पता नहीं अब केसे लिख पाऊंगा
मेरी यादों में बस तुम हो बस तुम हो

आपका शुभचिंतक
लेखक - चन्दन राठौड़

07:32pm, Fri 26-04-2013
_▂▃▅▇█▓▒░ Chandan Rathore (Official) ░▒▓█▇▅▃▂_

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