Sunday 21 April 2013

Muhobat Ke Karm ( महोब्बत के कर्म ) POEM No. 85 (Chandan Rathore)


Poem No.85
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महोब्बत के कर्म
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महोब्बत के कर्म कुछ ऐसे थे
पहले तो खुद रुलाये
फिर हँस कर चुप कराये
फिर बोले तुम फिर शुरू हो गये

आकर देख मेरी जगह पे
माँ कसम तेरी भी जान निकल जाएतुझसे हाथ जोड़ विनती है
यार अब तेरी शरारते सहन नही होती है

तू करना जुल्म इतना की मेरी सांसे रुक जाए
बस ऐसा कर की तेरे सामने मुझे मोत आ जाये

किसी को रुलाना तो कोई तुमसे सीखे
जब जरुरत हो हमारी और हम कभी ना दिखे
मै पागल कितना रोता हूँ तुम्हारे लिए
और मगरूर होना तो कोई तुमसे सीखे

तू रोना ना आज क्यों की रोया मै बहुत तेरी यादमें
एक एक आंसू पुकार रहा तुझे
तू कहा तेरा प्यार कहा
तू भी रोती मेरे आंसू पर अगर तू मेरी होती


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

5:39 PM 19/04/2013
(#Rathoreorg20)
_▂▃▅▇█▓▒░ Don't Cry Feel More . . It's Only RATHORE . . . ░▒▓█▇▅▃▂

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