POEM No.74
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तुम खुश हो . . .
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मेरी तक्लुफ़-ए-सनम क्या तुम खुश हो . . .
मेरी ख़ुशी-ए-सनम क्या तुम आज भी खुश हो . . .
हर कदम पे मेरे तक्लुफ़ पे-ए-हुशन की मल्लिका. . .
तू नही तेरी याद ही सही पर सच बताओ की तुम आज भी खुश हो . . .
मेरी चाहत को रोंधने वाले ए इन्शान जरा ये तो बताओ की तुम खुश हो . . .
तेरी बाहों में जो दिन कटे वो पल भी खुछ अजीब थे
आज तेरे बिन काट रहे हे हर पल तुम भी क्या अजीब थे
छोड़ कर गया तन्हा इस ज़माने में रोता हुआ देख कर
भी ये दीवाने पूछ लेते हे "क्यों खुश तो हो"
मेरी इतनी सी तम्मना हे की मेरी हसरते ना मिट जाए लिखते लिखते
मेरे अल्फाजो को पढ़कर कही कोई ये ना कह जाए की शायरों में तो बस तुम हो . . .
कहे की कमी थी साथ में मेरे
कहे की नमी थी इकरार में मेरे
जुश्त्जू रखता नही में अब तुमसे
पर हा सच बताना क्या आज भी तुम खुश हो . . .
खफा जो तुम हुई दुनिया बेगानी हो गई
सारी खुशिया मेरी मुझे ही रुसवाई दे गई
अब जाने कब तुम आओगे और मेरे बालो को सहलाओगे
प्यार से मेरी आखो में देख कर मुझे तुम ये फ़रमाओगे
"मेरी जान अब तो तुम खुश हो . . . "
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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11:12 AM 31/03/2013
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