Sunday 14 April 2013

Lekhak Ki Kalam Se. . . (लेखक की कलम से . . .) POEM NO. 82 (Chandan Rathore)


POEM No. 82
कविता नम्बर ८२
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लेखक  की कलम से . . .
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लिख रहा खाली दिल आज जाने क्या लिखेगा
मन में ना कोई है , जाने दर्द किसका भरेगा

उठकर सोच रहा अब , जाने किसको कागज पर आज उकेरेगा
कलम डूबा कर स्याही  में , बढ़ रहा है कागज की ओर
जाने किसको आज फिर से जीवित करेगा

देखा उसे मैने और वो लिखते ही रो पडा
पहला अक्षर  'तुम' था और उसे पढ़कर ही वो रो पड़ा

आंशुओ  के सेलाब में डूबते हुए लिखा कुछ  उसने
पास में भरा पैमाना उठा कर आज कई दिनों बाद चखा उसने

उठ कर गया लड़खड़ाते हुए
कुछ ढूंड रहा है शायद

कुछ पाकर झूम रहा है खिलखिलाते हुए
पुरानी डायरी मिली उसे पढ़ रहा है शरमाते हुए

उठा कलम देख आसमान में लिखना जब चालू किया उसने
"है प्रभु !
मै चला अपने  मुकाम पर अब कोई आये   तो  कह  देना  
लिखता था यहाँ बाबा कोई अब देश से हो गया देश निकाला
अगर तेरी थोड़ी सी कृपा हो और मै जिन्दा बच जाऊं
तो उसे भी मॉत का नाम दे देना"

इतना कहकर वो गाने लगा
जोर जोर से हँसने लगा

"सारी दुनिया मेरी कलम में
और में जा रहा हूँ  कब्र में "
किसी का स्वभाव  गलत बताया हो
किसी को कुछ ज्यादा अच्छा  बताया हो
किसी को अनजाने में कही ठेस  पहुंचाई  हो
किसी को मेरी कहानी सुनकर आँख  भर आई हो"

"में तो पात्र हूँ नाटक का आज मेरा नाटक पूरा हुआ
सभी को मेरा सत् - सत्  नमन आज मेरे विचारो का अंत हुआ"


आपका शुभचिंतक
लेखक -  राठौड़ साब "वैराग्य" 

9:23 AM 14/04/2013
(#Rathoreorg20)
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