POEM No.79
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नकाब कितने हैं ....
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आदमी अकेला पर उसके नकाब कितने हैं
मुस्कान एक पर उसके आज मोहताज कितने हैं
कोई भाई तो कोई दीदी यहाँ रिश्ते हजार निभते हैं
आदमी अकेला पर उसके नकाब कितने हैं
एक घर जहा बसते हैं हजार रिश्ते
घर में एक दुनिया की सबसे प्यारी माँ
जो बेटों को नजरों से दूर नही रख सकती
जो पैदल चलती हैं पर बेटों को रिक्शा की सलाह देती
खाना जो खिलाती हैं अपना पूरा प्यार लुटा देती हैं
कोई पहचानता नहीं की उसके आंशु के सेलाब कितने हैं
आदमी अकेला पर उसके नकाब कितने हैं
हो के मगरूर जमाना चलता हैं अपनी शान में
पर मत पूछों की यहाँ खुश आदमी के पीछे दुःख कितने हैं
कहता है रंग मंच हैं ये दुनिया
हर पल में नकाब बदलती हैं दुनिया
ऐसी दरिंदगी भी होगी कहा
जहाँ हर दम रुला देती है दुनिया
हंसमुख मुखोटे में छुपा हैं ढेरो गम
रोते हुए चेहरे में भी कही ख़ुशी देख लेते हम
कोई भागता हैं दुनिया की गुमनाम भीड़ में
कोई हँसाते हँसाते भी आँखे कर देता नम
उसकी नजर में आदमी एक पर यहाँ उसके नाम कितने हैं
आदमी अकेला पर उसके नकाब कितने हैं
समय :-7:38 AM 10/04/2013
आदमी अकेला पर उसके नकाब कितने हैं
आपका शुभचिंतक
लेखक - राठौड़ साब "वैराग्य"
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समय :-7:38 AM 10/04/2013
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